कहीं ऐश्वर्य की चम चम है, कहीं आजीवन ज़हरीले नाग।
कहीं अधिकारों की मांग है, कहीं उनका स्वेच्छापूर्वक त्याग।।
कहीं करवटें हैं देर सवेर, कहीं अर्धरात्रि से ही तेज़ बाघ।
कहीं मखमली कंबलों में लिपटी रातें, कहीं सर्द हवाएं ही सुहाग।।
कहीं घर की शीतलता है, कहीं झुलसाती भीषण आग।
कहीं मस्ती के गीत हैं, कहीं घर जाने का एक राग।।
कहीं सुविधाऐं प्रमाण है, कहीं वर्दी पे गंदा दाग।
आंखें खोल के देख तो मित्र, तू जाग सके तो जाग।।
दौलत, शौहरत, नाम या पद, ऊंचे से ऊंचा विभाग।
इन सब से कहीं ऊंचा है, वतन पे स्वतंत्रता का परित्याग।