मैं कौन हूं?
छप्पन इंच का सीना तो नहीं,
गर्व से फटती मेरी छाती है।
दुश्मन की दुश्मनी से अव्वल,
मुझे मित्रता निभानी आती है।।
मैं वो हूं जिसकी भीषण भुजाएं,
तुम्हें कभी नहीं ठुकराती हैं।
हर विपदा में सरकारें अंत में,
मेरे पास ही आती हैं।
मैं क्या जानू रंग-रूप, ऊंच-नीच,
क्या कुल, क्या धर्म, क्या जाति है?
सभी वर्गों से मुझे, हे भारत मां,
तेरी मिट्टी की खुशबू आती है।।
स्त्री, न मदिरा, न पद, न औधा,
न दौलत मुझे लुभाती है।
केवल भारत मां की चिंता,
हर दम मुझे सताती है।।
बर्फीले उच्च हिमालय पर,
जहां जीव-जंतु-मनुज कंपकंपाते हैं।
वहीं कपटी दुश्मन के गोले,
निद्रा से मुझे जगाते हैं।।
ये दिवाली के छुट-मुट पटाखों की ध्वनि,
कब मुझे तनिक भी डराती है?
मैं वो हूं जिसको, घुटनो बल,
स्वयं चट्टानें राह दिखाती हैं।।
मैं वो हूं जिसे जीवन-उपरांत,
मृत्यु भी नहीं मिटाती है।
छलनी-छलनी होने पर भी,